दोस्ती, रिश्ते और अकेलापन

शोध के मुताबिक जल्दी मौत का सबसे बड़ा कारण अकेलापन है। कैंसर, मोटापा, दिल की बीमारी, प्रदूषण, तनाव ये सभी जानलेवा हैं, लेकिन फिर भी जितना घातक मन का रोग है, उतना कोई और नहीं। शायद इसके मूल में एक वही सच है जो हमने बचपन में पढ़ा है "मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है"।

जब हम बच्चे होते हैं, हमारे माता-पिता हमारी जीवन रेखा होते हैं। शायद यही एक रिश्ता है जिसमें कोई मतलब नहीं होता, जो हमेेशा हमारे साथ होते हैं। हमारा बचपन हमारे माता-पिता और रिश्तेदारों के बीच गुजरता है। रिश्तेदारों में कुछ ऐसे होते हैं जिनसे हमें बहुत लगाव होता है, जो हमें प्रभावित करते हैं। 

किशोरावस्था में हम दोस्त बनाते हैं, फिर अपने भविष्य, पढाई, या किसी और कारण से उनका साथ छूट जाता है। अगर किस्मत अच्छी रही तो कुछ ऐसे दोस्त बचते हैं जिनका साथ कभी नहीं छूटता। फिर जब शादी होती है तो हमें एक 'जीवनसाथी' मिलता है। जीवनसाथी एक दिलचस्प शब्द है, इसका मतलब है वो इंसान जो हमेशा आपके साथ रहेगा - जिंदगी भर। 

ये सारे लोग हमें अच्छी तरह से जानते हैं। हमारी अच्छाइयां भी, बुराइयां भी। हमारी योग्यता भी और हमारी कमियां भी।
वो रिश्ते सहेज कर रखने चाहिए जो हमें अपनी कमियों के साथ स्वीकार करते हैं और अगर हम ये कर सकें तो शायद अकेलेपन से बच सकते हैं।

तो अगर हमें लंबी जिंदगी जीना है तो हर उस साथ को अहमियत देनी चाहिए जिससे हमें खुशी मिलती है, हमारा अकेलापन दूर होता है। यही हमारी यादें बनती हैं और यही खुशनुमा यादें जिंदगी यादगार बनाती हैं।

पर क्या ऐसा हो सकता है कि हम किसी के साथ हैं, फिर भी अकेले हैं? हम बात तो करते हैं पर एक दूसरे को समझ नहीं पाते। जरुर हो सकता है, और शायद ऐसे साथ से अकेलापन ही बेहतर है। आखिर ऐसी लम्बी उम्र जीकर क्या फायदा ? जिंदगी बड़ी होनी चाहिए लंबी नहीं !!


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