लॉक डाउन - लॉक डाउन !!

आज बैंगलोर बंद है, सुना है लॉक डाउन है। पूरे एक दिन का !!

जब मार्च में प्रधान मंत्री जी ने पूरे देश में लॉक डाउन की घोषणा की तब हमें लगा की ये हमारे लिए जरूरी है। अगर अर्थव्यवस्था को नुक्सान होगा तो सह लेंगे पर लोगों की जान तो बच जाए। 

बात सही भी थी, हमें कोरोना के बारे में बहुत काम जानकारी थी।  WHO के अधिकारी भी भरोसा जताने वाली बातें नहीं कर रहे थे, ये कैसा वायरस है, कैसे फैलता है , इसका संक्रमण कैसे रोका जा सकता है और अगर हो गया तो इलाज क्या है।  हमें कुछ नहीं पता था, बस इतना पता था कि अगर ये बहुत तेजी से फैला तो हमारी चिकित्सा व्यवस्था संभल नहीं पाएगी।  मास्क्स नहीं थे, P.P.E कीटस नहीं थे , वेंटिलेटर्स, दवाइयां सबकी कमी थी।  

एक बात जो धीरे धीरे समझ आयी की लॉक डाउन करने से कोरोना ख़तम नहीं होने वाला है, इससे हमें कुछ समय मिल रहा है की हम तैयारी कर पाएं ,और अगर हम वो कर पाए हैं तो वही लॉक डाउन का सही फायदा है। 

और आज जब हमारे पास थोड़ी ज्यादा जानकारी है , मास्क्स और सोशल डिस्टन्सिंग के फायदे पता हैं और सबसे बड़ी बात ये पता है कि कोरोना कहीं जाने वाला नहीं है , हमें इसके साथ ही रहना सीखना पड़ेगा !

ये सुनकर निराशा होती है कि अभी भी हम लॉक डाउन से आगे कुछ सोच नहीं पा रहे हैं। ये कदम ऐसा ही है कि नहीं करने से अच्छा कुछ तो करो,भले उसका असर हो या न हो। लॉक डाउन नहीं हुआ, हरताल हो गया।  दुकानें बंद करो, ठेले बंद करो, जो घर से निकल रहा है, उसको अंदर करो।  पूरी पुलिस की ताकत लॉक डाउन कराने में ही लगी हुई है। 

मेरी राय में तो एक दिन के लॉक डाउन से व्यापारियों के नुक्सान के अलावा कुछ ज्यादा नहीं होने वाला। ये लड़ाई ऐसे सांकेतिक क़दमों से नहीं जीती जा सकती :(