Barkha rani... barkha rani

बरखा रानी, बरखा रानी
तू क्यूँ इतना इतराती है;
एक झलक तो तू दिखलाती है,
पर पलक झपी और तू गायब हो जाती है;
हम आस में तेरी बैठे हैं,
और तू इतना बलखाती है;
कुछ राहत दे हम झुलसों को,
मध्धम मद्धम सी पवन चला;

कि .. आज हमारा जी भर के गाने को जी चाहता है !!

वो बचपना था और चला गया,
डरता था जो तूफानों से;
कागज के नाव बनाता था, 
और पहरा देता था नालों पे;
न बचपन है, न कागज  है,
न नाव मेरी वो कागज़ की;
एक कश्ती ऐसी व्याकुल है,
न उसे जरूरत साहिल की;

और .. हर तूफ़ान से उसका टकराने को जी चाहता है !!

घनघोर अँधेरा भी कर दे,
तो भी कोई परवाह नहीं;
तेरी भीषण हुंकार भी हो,
तो भी भीतर से आह नहीं;
चमक भी तू, गरज भी तू,
उमड़ भी तू, घुमड़ भी तू;
न देर कर बरस भी जा,
न और तू हमें तडपा;

कि... आज हमारा भीग जाने को जी चाहता है !!