Barkha rani... barkha rani

बरखा रानी, बरखा रानी
तू क्यूँ इतना इतराती है;
एक झलक तो तू दिखलाती है,
पर पलक झपी और तू गायब हो जाती है;
हम आस में तेरी बैठे हैं,
और तू इतना बलखाती है;
कुछ राहत दे हम झुलसों को,
मध्धम मद्धम सी पवन चला;

कि .. आज हमारा जी भर के गाने को जी चाहता है !!

वो बचपना था और चला गया,
डरता था जो तूफानों से;
कागज के नाव बनाता था, 
और पहरा देता था नालों पे;
न बचपन है, न कागज  है,
न नाव मेरी वो कागज़ की;
एक कश्ती ऐसी व्याकुल है,
न उसे जरूरत साहिल की;

और .. हर तूफ़ान से उसका टकराने को जी चाहता है !!

घनघोर अँधेरा भी कर दे,
तो भी कोई परवाह नहीं;
तेरी भीषण हुंकार भी हो,
तो भी भीतर से आह नहीं;
चमक भी तू, गरज भी तू,
उमड़ भी तू, घुमड़ भी तू;
न देर कर बरस भी जा,
न और तू हमें तडपा;

कि... आज हमारा भीग जाने को जी चाहता है !!

5 comments:

main_sachchu_nadan said...

wah bhai wah, majaa aa gaya ..
कि ... आज हमारा मन फिर से कविता लिखने को करता है :-)

Jeetendra said...

Ahem ahem, some one wanted to improve his Hindi skill,I seeeeeee.

Anonymous said...

Shi hai be ..ab to tujhe Kalam ka Major bolna padega...:P:P
Nice one.......:)

Chetan said...

Shi hai be ..ab to tujhe Kalam ka Major bolna padega...:P:P
Nice one.......:)

Shoonya said...

@Sachin
Dhanywad :)

@Raju
Han bhai, I still want :).

@Chetan
Nahi be, yahan promotion mushkil hai, TI se bhi jyada:P